निर्विचार में रहो १८.१२.१९७७, मुम्बई मैं कह रही हूँ तुम्हारे सामने जो भी प्रश्न हैं वह अचेतन में छोड़ दो, वह मेरे पैरों से बह रहा है। माने कोई भी प्रश्न हो, तुम्हारी लड़की का प्रश्न हो, समझ लो, उसमें खोपड़ी भिड़ाने से कुछ नहीं होने वाला। जो भी प्रश्न हो यहाँ छोड़ दो , उसका उत्तर मिल जाएगा। अब तुम अगर सोचते हो कि इससे लाभ होगा वो वह नहीं बात है। परमात्मा जो कुछ सोचता है, जो हितकारी चीज़ है वह घटित हो जाएगा। वह तुम भी नहीं कर सकते। इसलिए उस पर छोड़ दो। तुम बीच में क्यों टंगिया तोड़ रही हो? तुम क्यों परेशान हो रही हो? तुम्हे परेशान होने की कोई जरुरत नहीं है। तुम छोड़ तो दो। जो तुम्हारे सारे प्रश्न को साल्व करने की कमेटी बैठी है। उसके पास अपने प्रश्न छोड़ दो । सहज योग में यही तो कमाल है कि सिर का बोझ उतर गया, उनकी खोपड़ी पर। छोड़ के देखो। ऐसे कमाल होंगे ऐसे कमाल होंगे कि बस! लेकिन मनुष्य की खुद्दारी की बात हो जाती है। आखिर तक वह ऐसा ही सोचता रहता है कि मुझे ही करना है, मुझे ही करना है और सोचते रहेंगे। एक न एक ताना-बाना चलता रहेगा। कितना भी आप करते रहिए, आखिर आप पाइएगा कि आप कहीं भी नहीं पहुँच पाएं, आप पागल खाने में जाईएगा। आपका प्रश्न हल करने के लिए एक बहुत बड़ी कमेटी बैठी है। उसमें पाँचों तत्व के अधिनायक बैठे हुए है ब्रह्मदेव। सारे धर्म के बनाने वाले बैठे हैं। विष्णु और सारे संसार की स्थिति लेकर और लय को लेकर बैठे हैं शंकरजी। उनको भी तो कभी कभी चान्स दो कि तुम्ही लोग सारे प्रश्न हल करोगे। जैसे ही आप निर्विचार में होना शुरू कर देंगे आप देखेंगे कि ये तीनों शक्तियाँ अपने आप बन जाएंगी, अपने आप सुधर जाएंगे। धर्म और काम निर्विचारिता में रहने से आपके अन्दर के जो प्रश्न है उनमें कासमिक चेंज (बदलाव) आता है। अंदरूनी घटना होती है, उसके स्रोत पर घटना होती है। जैसे एक आदमी समझ लीजिए शराब पीता है। एक आदमी मेरे पास आता है और कहता है, माँ उसकी शराब की लत छूडाइये। उसकी कुण्डलिनी जागृत करते ही उसके अन्दर की कासमक दशा ऐसी हो जाती है कि जब वह शराब पीता है तो उसे उल्टी हो जाती है। फिर भी हो सकता है कि शराब की जो मादक शक्ति है उसको भी खत्म कर सकता है। जब शक्ति में बैठे है तो हर तरह की शक्ति को ले सकते हैं। जितनी डिस्टूक्टिव (विध्वंसक) शक्ति है उस सबको खत्म कर सकते है। लेकिन आप जो अपने छोटे से दिमाग से हर चीज़ को सुलझाने का प्रयत्न करते है उसी से गड़बड़ हो जाती है। बिल्कुल निर्विचार! मेरे पैर पर भी लोग रहते है तब भी विचार में रहते है। मुझे इतना आश्चर्य होता है कि कम से कम पैर पर तो विचार छोड़ दो। वहाँ भी विचार चलता रहता है। मैं हाथ -पाँव चला रही हूँ। सुधार रही हूँ। सारा तांडव - नृत्य हो रहा है, ये लोग विचार कर रहे हैं। कम से कम मेरे पैर पर विचार छोड़ना आना चाहिए। फिर धीरे धीरे यह आदत बनती जाएगी, निर्विचारिता की, सिर्फ एक छोटी सी चीज़ है निर्विचारिता की। कोई सा भी आपका प्रश्न हो निर्विचारिता में रहो । वैसे मैं आपको सुझाव देती रहती हूँ कि आप का ये चक्र क्यों पकड़ता है, वह चक्र क्यों पकड़ता है। छोटी-छोटी बाते हैं इन्हें समझ लेना चाहिए। आप शरीर को ठीक रखो, मन को ठीक रखो। मन की भी बहुत सी बिमारियाँ होती है। औरतों को बीमारियाँ होती हैं कि आदमी के पीछे मरो, खास कर के। आदमियों को और बिमारियाँ होती है। मन की अनेक बिमारियाँ होती हैं। उधर जरासा चित्त रखो और निर्विचारिता में रहो। एक छोटी सी चीज़ करने से आपके हृदय में बैठा हुआ जो 'स्व' है उसका प्रकाश फैलना शुरू होगा। और यह वही प्रकाश है जो वाइब्रेशन की तरह बह रहा है। यह आपके अन्दर बसा हुआ परमात्मा का जो अंश है, स्व, सेल्फ उसका प्रकाश सारे संसार में जाता है और लौट के आपके पास आ जाता है। पैराबोली में अनेक उसकी लहरें चलतीहै और फिर हृदय में आ जाता है। अपनी जो बाते हैं उसे ठीक रखो, आपकी जो शक्ति है, तेल उसे दिमागी जमा-खर्च में न खर्च करो । लौ को सीधे लगाओ। लौ का ऊपरी हिस्सा उसे माँ से चिपका दो, पैर से बाँध दो। निर्विचारिता में निर्भिकता से जलती रहे। ऐसा आदमी जहाँ भी रहेगा, उसकी तेजस्विता देख कर लोग कहेंगे, भाई , तुम्हारा गुरु कौन है? ये तुमने किससे पाया ? यही सहजयोग के लिए आप को करना है। जहाँ तक हो सके निर्विचारिता में रहे। हम तो धक्का दे रहे है कुण्डलिनी को। आपको भी वहाँ रहने की कोशिश करनी चाहिए। आप जरासी कोशि करेंगे तो कोई विचार नहीं आएगा। और, अपना माथा किसी के सामने नहीं झुकाना है। किसी के भी सामने , कोई भी हो। बहुत से सहजयोगी सहजयोगियों के आगे माथा झुकाते है, मैंने देखा है। ये सब फालतू की बाते करने की कोई जरूरत नहीं है । मूर्तियों में भी देख कर जिनके वाइब्रेशन ठीक हो, ठीक है। मूर्तियों से आप बहुत बड़ी मूर्ति है। आप तो स्वयं एक मंदिर है। क्या वह मूर्ति आपके वाइब्रेशन जानती है? उसमें तो वाइब्रेशन बस आ रहे हैं, बस और क्या हो रहा है । आप तो अपने हाथ भी चढ़ा सकते है, दूसरों को जागृति दे सकते हैं। किसी के चक्र खराब हों तो ठीक कर सकते हैं। मूर्ति तो सिर्फ वाइब्रेशन छोड़ रही है। बहुत ऊँचा राहरी में बहुत काम हुआ है। जितना आप गहरा सहजयोग में बम्बई सेंटर में बहुत काम हुआ है, इस में कोई शक नहीं। और लोगों ने बहुत अपने आपको उठा लिया है। वैसे भी महाराष्ट्र में बहुत काम हुआ है। एक छोटे से गाँव में, उतरेंगे उतना ही गहरा काम होगा। अपने को बहुत ज़्यादा लोग नहीं चाहिए। थोडे लोगों से काम बन जाएगा किन्तु जो भी हों वह पक्के हो। ---------------------- 19771218_Nirvichar Mein Raho - Atma itself in form_Mumbai_H_TC.pdf-page0.txt निर्विचार में रहो १८.१२.१९७७, मुम्बई मैं कह रही हूँ तुम्हारे सामने जो भी प्रश्न हैं वह अचेतन में छोड़ दो, वह मेरे पैरों से बह रहा है। माने कोई भी प्रश्न हो, तुम्हारी लड़की का प्रश्न हो, समझ लो, उसमें खोपड़ी भिड़ाने से कुछ नहीं होने वाला। जो भी प्रश्न हो यहाँ छोड़ दो , उसका उत्तर मिल जाएगा। अब तुम अगर सोचते हो कि इससे लाभ होगा वो वह नहीं बात है। परमात्मा जो कुछ सोचता है, जो हितकारी चीज़ है वह घटित हो जाएगा। वह तुम भी नहीं कर सकते। इसलिए उस पर छोड़ दो। तुम बीच में क्यों टंगिया तोड़ रही हो? तुम क्यों परेशान हो रही हो? तुम्हे परेशान होने की कोई जरुरत नहीं है। तुम छोड़ तो दो। जो तुम्हारे सारे प्रश्न को साल्व करने की कमेटी बैठी है। उसके पास अपने प्रश्न छोड़ दो । सहज योग में यही तो कमाल है कि सिर का बोझ उतर गया, उनकी खोपड़ी पर। छोड़ के देखो। ऐसे कमाल होंगे ऐसे कमाल होंगे कि बस! लेकिन मनुष्य की खुद्दारी की बात हो जाती है। आखिर तक वह ऐसा ही सोचता रहता है कि मुझे ही करना है, मुझे ही करना है और सोचते रहेंगे। एक न एक ताना-बाना चलता रहेगा। कितना भी आप करते रहिए, आखिर आप पाइएगा कि आप कहीं भी नहीं पहुँच पाएं, आप पागल खाने में जाईएगा। आपका प्रश्न हल करने के लिए एक बहुत बड़ी कमेटी बैठी है। उसमें पाँचों तत्व के अधिनायक बैठे हुए है ब्रह्मदेव। सारे धर्म के बनाने वाले बैठे हैं। विष्णु और सारे संसार की स्थिति लेकर और लय को लेकर बैठे हैं शंकरजी। उनको भी तो कभी कभी चान्स दो कि तुम्ही लोग सारे प्रश्न हल करोगे। जैसे ही आप निर्विचार में होना शुरू कर देंगे आप देखेंगे कि ये तीनों शक्तियाँ अपने आप बन जाएंगी, अपने आप सुधर जाएंगे। धर्म और काम निर्विचारिता में रहने से आपके अन्दर के जो प्रश्न है उनमें कासमिक चेंज (बदलाव) आता है। अंदरूनी घटना होती है, उसके स्रोत पर घटना होती है। जैसे एक आदमी समझ लीजिए शराब पीता है। एक आदमी मेरे पास आता है और कहता है, माँ उसकी शराब की लत छूडाइये। उसकी कुण्डलिनी जागृत करते ही उसके अन्दर की कासमक दशा ऐसी हो जाती है कि जब वह शराब पीता है तो उसे उल्टी हो जाती है। फिर भी हो सकता है कि शराब की जो मादक शक्ति है उसको भी खत्म कर सकता है। जब शक्ति में बैठे है तो हर तरह की शक्ति को ले सकते हैं। जितनी डिस्टूक्टिव (विध्वंसक) शक्ति है उस सबको खत्म कर सकते है। लेकिन आप जो अपने छोटे से दिमाग से हर चीज़ को सुलझाने का प्रयत्न करते है उसी से गड़बड़ हो जाती है। बिल्कुल निर्विचार! मेरे पैर पर भी लोग रहते है तब भी विचार में रहते है। मुझे इतना आश्चर्य होता है कि कम से कम पैर पर तो विचार छोड़ दो। वहाँ भी विचार चलता रहता है। मैं हाथ -पाँव चला रही हूँ। सुधार रही हूँ। सारा तांडव - नृत्य हो रहा है, ये लोग विचार कर रहे हैं। कम से कम मेरे पैर पर विचार छोड़ना आना चाहिए। फिर धीरे धीरे यह आदत बनती जाएगी, निर्विचारिता की, सिर्फ एक छोटी सी चीज़ है निर्विचारिता की। कोई सा भी आपका प्रश्न हो निर्विचारिता में रहो । वैसे मैं आपको सुझाव देती रहती हूँ कि आप का ये चक्र क्यों पकड़ता है, वह चक्र क्यों पकड़ता है। छोटी-छोटी बाते हैं इन्हें समझ लेना चाहिए। आप शरीर को ठीक रखो, मन को ठीक रखो। मन की भी बहुत सी बिमारियाँ होती है। औरतों को बीमारियाँ होती हैं कि आदमी के पीछे मरो, खास कर के। आदमियों को और बिमारियाँ होती है। मन की अनेक बिमारियाँ होती हैं। उधर जरासा चित्त रखो और निर्विचारिता में रहो। एक छोटी सी चीज़ करने से आपके हृदय में बैठा हुआ जो 'स्व' है उसका प्रकाश फैलना शुरू होगा। और यह वही प्रकाश है जो वाइब्रेशन की तरह बह रहा है। यह आपके अन्दर बसा हुआ परमात्मा का जो अंश है, स्व, सेल्फ उसका प्रकाश सारे संसार में जाता है और लौट के आपके पास आ जाता है। पैराबोली में अनेक उसकी लहरें चलतीहै और फिर हृदय में आ जाता है। 19771218_Nirvichar Mein Raho - Atma itself in form_Mumbai_H_TC.pdf-page1.txt अपनी जो बाते हैं उसे ठीक रखो, आपकी जो शक्ति है, तेल उसे दिमागी जमा-खर्च में न खर्च करो । लौ को सीधे लगाओ। लौ का ऊपरी हिस्सा उसे माँ से चिपका दो, पैर से बाँध दो। निर्विचारिता में निर्भिकता से जलती रहे। ऐसा आदमी जहाँ भी रहेगा, उसकी तेजस्विता देख कर लोग कहेंगे, भाई , तुम्हारा गुरु कौन है? ये तुमने किससे पाया ? यही सहजयोग के लिए आप को करना है। जहाँ तक हो सके निर्विचारिता में रहे। हम तो धक्का दे रहे है कुण्डलिनी को। आपको भी वहाँ रहने की कोशिश करनी चाहिए। आप जरासी कोशि करेंगे तो कोई विचार नहीं आएगा। और, अपना माथा किसी के सामने नहीं झुकाना है। किसी के भी सामने , कोई भी हो। बहुत से सहजयोगी सहजयोगियों के आगे माथा झुकाते है, मैंने देखा है। ये सब फालतू की बाते करने की कोई जरूरत नहीं है । मूर्तियों में भी देख कर जिनके वाइब्रेशन ठीक हो, ठीक है। मूर्तियों से आप बहुत बड़ी मूर्ति है। आप तो स्वयं एक मंदिर है। क्या वह मूर्ति आपके वाइब्रेशन जानती है? उसमें तो वाइब्रेशन बस आ रहे हैं, बस और क्या हो रहा है । आप तो अपने हाथ भी चढ़ा सकते है, दूसरों को जागृति दे सकते हैं। किसी के चक्र खराब हों तो ठीक कर सकते हैं। मूर्ति तो सिर्फ वाइब्रेशन छोड़ रही है। बहुत ऊँचा राहरी में बहुत काम हुआ है। जितना आप गहरा सहजयोग में बम्बई सेंटर में बहुत काम हुआ है, इस में कोई शक नहीं। और लोगों ने बहुत अपने आपको उठा लिया है। वैसे भी महाराष्ट्र में बहुत काम हुआ है। एक छोटे से गाँव में, उतरेंगे उतना ही गहरा काम होगा। अपने को बहुत ज़्यादा लोग नहीं चाहिए। थोडे लोगों से काम बन जाएगा किन्तु जो भी हों वह पक्के हो।